कीवी फल का उत्पादन कर मानसिंह व सीता ने बदल दी पौराणिक किसानी के तौर-तरीके

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  • कीवी खेती को बढ़ावा देकर रायफल मैन से “कीवी मैन” बने मान सिंह
  • कभी गांव में घस्यारी नाम से जानी जाने वाली दुवाकोटी की सीता चौहान ने अब “कीवी क्वीन” के रूप में  बना डाली अपनी पहचान
  • क्षेत्र के काश्तकारों के लिये बने प्रेरणास्रोत
  • डेंगू की बीमारी में रामबाण साबित होती है कीवी

वाचस्पति रयाल@नरेन्द्रनगर।

यों तो पहाड़ों में धान, गेहूं ,मंडुवा,सांवा,चीणा आदि की परम्परागत खेती यहां के लोग सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी करते चले आ रहे हैं। मगर गजा क्षेत्र के गांव गौंसारी के पूर्व फौजी मानसिंह चौहान व इसी क्षेत्र की ग्राम दुवाकोटी की श्रीमती सीता चौहान ने जमाने के बदलते खेती-किसानी के तौर-तरीकों को देखते हुए,दृढ़ निश्चय व ऊंचे हौसलों के साथ कुछ नया करने की ऐसी ठानी कि दोनों ने कीवी की खेती की शुरुआत करते हुए अपना शानदार व सफल भाग्य आजमा डाला।

परम्परागत खेती  के सहारे, नयी किसानी की नैया में पांव जमाकर सवार होने वाले मान सिंह चौहान व श्रीमती सीता चौहान ने 5 से लेकर 1 दर्जन तक के कीवी के पौधों को माटी में रोपते हुए नयी खेती की शूरुआत कर डाली।

दोनों की मेहनत 5 साल बाद उस वक्त रंग लाई जब कीवी की बेल पर फल लगने शुरू हो गए। दुवाकोटी की सीता चौहान ने वर्ष 2014-15 तथा गौंसारी के मानसिंह चौहान ने वर्ष 2017-18 में कीवी की खेती की शुरुआत क्रमशः 11 व 5 पौधों से की थी।
सीता व मानसिंह की खेती का यह नया प्रयोग उनकी मेहनत व परिश्रम के दम पर ऐसा परवान चढ़ा कि आज दोनों ने अपने-अपने खेतों में कीवी के दर्जनों पौधे लगा कर अपनी आजिविका बढ़ा ली।

देश की सरहदों पर बरसों भारत मां की रक्षा में तैनात गौंसारी गांव निवासी पूर्व फौजी मान सिंह चौहान ने तीन साल में ही कीवी की अच्छी पैदावार करके राइफल मैन से कीवी मैन के रूप में पहचान बना डाली।आज चौहान के खेतों में कीवी के 2गुना से अधिक पौधे हैं।

वहीं गजा के निकट दुवाकोटी गांव निवासी श्रीमती सीता चौहान ने शुरुआत में कीवी के एक दर्जन पौधे लगाए थे मगर आज इनके खेतों में 3 गुना से अधिक पौधे हैं। कोरोना व डेंगू जैसे घातक बीमारियों में लाभप्रद व औषधीय गुणों से युक्त कीवी की अच्छी खासी पैदावार से दोनों काश्तकारों को अच्छी आय भी प्राप्त हो रही है।

वहीं अपनी मेहनत व परिश्रम के दम पर कीवी की अच्छी खासी पैदावार करने वाली सीता चौहान की पहचान घस्यारी से आज कीवी क्वीन के रूप में हो चुकी है। इन दोनों को कीवी मैन व कीवी क्वीन के नाम से नवाजने वाले उद्यान विभाग के अधिकारियों ने इन्हें,अन्य काश्तकारों के लिए प्रेरणा स्रोत बताया है।

अन्य काश्तकारों के लिए खेती को भरण-पोषण के जरिया बनाकर स्वावलंबन की नई दिशा देने वाले मानसिंह चौहान व श्रीमती सीता देवी चौहान की काश्तकारी से प्रभावित होकर ग्राम जयकोट, गौंसारी, दुवाकोटी,जगेठी व गजा नगर पंचायत क्षेत्र के 100 से अधिक काश्तकारों ने कीवी के पौधे लगा कर इसकी खेती की शुरुआत कर डाली है।

कीवी मैन मान सिंह चौहान बताते हैं कि कीवी की बेलों के नीचे जमीन पर सब्जियां तैयार की जाती हैं वहीं दुवाकोटी गांव निवासी श्रीमती सीता चौहान ने कीवी पौधों के नीचे सब्जी तथा आस पास ‘ रोजमेरी के 50 से भी अधिक पौधे लगाए हैं।
इनका कहना है कि कीवी फल बहुत कीमती है,साथ ही रोजमेरी भी ऊंचे दामों पर बिकता है।

उद्यान रक्षा सचल दल गजा प्रभारी सुषमा चौहान ने कहा कि कीवी को जंगली जानवर नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।
साथ ही औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण कीमत भी ठीक मिलती है। कीवी के पौधों को लगाते समय मादा पौधों के साथ एक या दो नर पौधे लगाए जाने आवश्यक होते हैं । इसकी बेल के लिए टी (T ) आकार के ऐंगल लगाये जाते हैं।
कहा कि 3 साल का पौधा ही फल देने लगता है।

सदियों से धान,गेहूं पर आधारित परंपरागत खेती के साथ ही गजा क्षेत्र में काश्तकारों का रुझान कीवी की खेती की ओर एक अच्छी पहल है। कहना चाहिए कि पूर्व फौजी मानसिंह चौहान एवं श्रीमती सीता चौहान ने क्षेत्र में कीवी की खेती को बढ़ावा देकर परंपरागत खेती की जगह अब नयी नस्लों की फसलों के उत्पादन की ओर काश्तकारों का ध्यान आकृष्ट कर ना सिर्फ़ खेती करने, बल्कि स्वावलंबन की दिशा में बढ़ते कदम, काश्तकारों की सफलता की नयी इबारत लिखेंगे।

काश्तकार फसलों को उगाने के लिए ना सिर्फ बीज बोता है, बीज के साथ उसका पसीना भी बहता है।
खून-पसीना बहा कर काम करने वालों को अर्पित करता हूं स्वलिखित पंक्तियां ,,,,,

‘पसीने की स्याही से जो लिख डालते हैं अपने इरादों को, उनके मुकद्दर के पन्ने कभी कोरे नहीं हुआ करते’

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