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वाचस्पति रयाल@नरेन्द्रनगर।
समूचे विश्व में देवताओं तथा ऋषि मुनियों की भूमि के नाम से विख्यात,भारत का 28 वां राज्य उत्तराखंड, आध्यात्मिक अथवा देवभूमि के नाम से जाना जाता है।
यहां की गहरी घाटियों से लेकर पर्वत शिखरों पर जगह-जगह देवी- देवताओं के मंदिर विद्यमान हैं।आस्था,विश्वास व धर्म परायण देश भारत में मां सती के 51 सिद्ध पीठ हैं।इन्हीं में से एक है, मां कुंजापुरी सिद्ध पीठ।
मां कुंजापुरी सिद्ध पीठ नरेंद्रनगर से 13 किलोमीटर की दूरी पर उतुंग सुरम्य पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य समुद्र तल से 6 हजार 300 फिट की ऊंचाई पर विराजमान है।
जहां ऋषिकेश-गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग के हिंडोला खाल मोटर हेड से,5कि०मी० रोड से छोटे-बड़े वाहनों के जरिए सुगमता से पहुंचा जा सकता है।
स्कंद पुराण के अनुसार पौराणिक काल में दक्ष प्रजापति द्वारा कनखल (हरिद्वार) में एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया गया, जिसमें भगवान शिव को छोड़ सभी देवता आमंत्रित किए गए।
दामाद शिव को ना बुलाए जाने पर सती भगवान शिव से आज्ञा लेकर, पिता द्वारा आयोजित, यज्ञ में शामिल होने चली गई।
यज्ञ में शामिल होने पहुंची सती ने देखा कि वहां उन्हें आदर,सम्मान नहीं मिल रहा है, बल्कि भगवान शिव के लिए भी अपमानजनक शब्द शब्दों का प्रयोग हो रहा है ,यह सब देख व सुन करके मां सती क्रोध की ज्वाला में तपने लगी।कुपित होकर सती जी ने यज्ञ कुंड में कूद कर अपनी आहुति दे दी। साथ में गये शिव गणों ने यज्ञ का विध्वंस करने के साथ ही,दक्ष का शीश काट डाला।
भगवान शिव घटना की सूचना मिलते ही क्रोधित हो उठे, वह कैलाश से उतरकर कनखल पहुंचे और यज्ञ कुंड से मां सती का पार्थिव शरीर अपने कंधे पर उठाकर कैलाश की ओर चल पड़े। सती के शरीर के भाग जिन-जिन स्थानों पर गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई।
सुप्रसिद्ध सिद्ध पीठ श्री कुंजापुरी स्थान पर मां सती का कुंज भाग अर्थात हृदय का भाग गिरा, अतः यहां श्री कुंजापुरी सिद्ध पीठ की स्थापना हुई।
यहां मां सती का कुंज अर्थात हृदय का भाग गिरा था, इसलिए मां अपने भक्तों पर बहुत दयालु होती हैं। मान्यता है कि जो मां के दरबार में सच्चे मन से मन्नतें मांगने जाता है, उसकी मनोकामना पूर्ण होती है।
यह सिद्ध पीठ अत्यंत रमणीक पर्वत शिखर पर विराजमान है। जो चारों ओर बांज, बुरांश के वनों की हरीतिमा से,और भी सुशोभित लगता है।वनाच्छादित पर्वत श्रृंखलाओं के बीच चंद्र मुकुट सा चमकता मंदिर व धार्मिक स्थल अत्यंत दर्शनीय व मनोहारी लगता है।
यहां से बंदर पूंछ, चौखंबा, नीलकंठ, सुरकंडा, चंद्रबदनी, गंगोत्री व केदारनाथ सहित और भी अनेकों विहंगम स्थानों के दर्शन होने से भक्त अपने जीवन को धन्य मानते हैं। मान्यता है कि जो भी आस्थावान श्रद्धालु मां के दरबार में जाकर सच्चे मन से मन्नतें मांगता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।
नरेंद्रनगर के पालिका मैदान में हर वर्ष मां कुंजापुरी के नाम से शारदीय नवरात्रों में भव्य मेले का आयोजन होता है। प्रथमे शैलपुत्रीश्च सती ने यज्ञ कुंड में अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया और वह शैलपुत्री के नाम से ही विख्यात हुई। पार्वती, ओमवती भी इन्हीं के नाम हैं।
नवरात्र पूजन में प्रथम दिन, इन्हीं की पूजा अर्चना की जाती है।