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काबुल, अफगानिस्तान में तालिबान के बढ़ते कब्जे के बीच हालात तेजी से बिगड़ रहे हैं। अफगानिस्तान में तेजी से तालिबान का कब्जा बढ़ने के साथ ही अमेरिका अब वहां से अपने नागरिकों को बचाने में जुट गय़ा है। अफगानिस्तान में फंसे अपने दूतावास कर्मचारियों और अन्य नागरिकों को निकालने के लिए अमेरिका सेना राजधानी काबुल पहुंच गई है। तालिबान विद्रोहियों द्वारा देश के दूसरे और तीसरे सबसे बड़े शहरों पर कब्जा करने के एक दिन बाद शनिवार को एक अमेरिकी अधिकारी ने बताया कि अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान की राजधानी में दूतावास कर्मियों और अन्य नागरिकों को निकालने में मदद करने के लिए काबुल पहुंच गए हैं।
पेंटागन ने कहा है कि मरीन की दो बटालियन और एक पैदल सेना बटालियन रविवार शाम तक काबुल पहुंच जाएगी जिसमें करीब 3,000 सैनिक शामिल होंगे। अमेरिकी अधिकारी ने बताय़ा कि वे काबुल आ गए हैं और उनका आना कल तक जारी रहेगा। हजारों और सैनिकों को इलाके में तैनाती के लिए भेजा गया है। अमेरिकी अधिकारियों और कर्मचारियों और अन्य नागरिकों की सुरक्षित निकासी के लिए सैनिकों की अस्थायी तैनाती से संकेत मिलता है कि तालिबान देश के बड़े हिस्से पर तेजी से कब्जा बढ़ाता जा रहा है।
तालिबान ने शुक्रवार को अफगानिस्तान के दक्षिणी हिस्से में लगभग पूरा कब्जा कर लिया जहां उसने चार और प्रांतों की राजधानियों पर नियंत्रण हासिल कर लिया। अमेरिका के सैनिकों की पूरी तरह वापसी से कुछ सप्ताह पहले अब तालिबान धीरे-धीरे काबुल की ओर बढ़ रहा है। उसने कंधार, गजनी समेत 10 से भी अधिक प्रमुख प्रांतीय राजधानियों पर कब्जा कर लिया है।
कई अन्य देश भी लोगों को निकालने में जुटे
ब्रिटेन के रक्षा मंत्री बेन वालेस ने बताया कि अफगानिस्तान से ब्रिटिश नागरिकों को निकालने के लिए करीब 600 सैनिक भेजे जाएंगे।समाचार एजेंसी एपी के अनुसार, कनाडा भी काबुल से अपने स्टाफ को निकालने के लिए एक विशेष बल भेजने जा रहा है। जबकि आस्ट्रेलिया भी इसी तरह का कदम उठाने जा रहा है। वह आस्ट्रेलियाई सैनिकों की मदद करने वाले अफगान लोगों को सुरक्षित निकालने में अमेरिका की मदद करेगा।
अफगानिस्तान को आखिरी बड़ा झटका हेलमंद प्रांत की राजधानी से नियंत्रण खोने के रूप में लगा है जहां अमेरिकी, ब्रिटिश और अन्य गठबंधन नाटो सहयोगियों ने पिछले दो दशक में भीषण लड़ाइयां लड़ी हैं। इस प्रांत में तालिबान को नेस्तानाबूद करने के प्रयासों में संघर्ष के दौरान पश्चिमी देशों के सैकड़ों सैनिक मारे गये। इसका मकसद अफगानिस्तान की केंद्र सरकार और सेना को नियंत्रण का बेहतर मौका देना था।