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नई दिल्ली। कांग्रेस को पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार से निराश पार्टी ने पहले की तरह इस बार भी ‘आत्ममंथन और आत्मचिंतन ’ की बात कही है।
कांग्रेस को उम्मीद थी कि इस बार वह चार राज्यों में सरकार बना रही है और यदि ज्यादा ही पीछे रही तो वह गठबंधन कर सरकार बनाने की स्थिति में होगी। उत्तराखंड और पंजाब में उसे पूर्ण बहुमत मिलने की उम्मीद थी लेकिन इन दोनों राज्यों में उसके मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार ही चुनाव हार गये। गोवा और मणिपुर में भी उसे पूरी उम्मीद थी कि वहां वह सरकार बना लेगी लेकिन नतीजे विपरीत रहे।
कांगेस के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक पंजाब में प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने चुनाव से ठीक पहले जो नाटक किया उसका खामियाजा पार्टी को इस चुनाव में भुगतना पड़ा। उसका कहना है कि कांग्रेस नेतृत्व ने चुनाव से पहले पंजाब को लेकर राजनीतक स्तर पर परिपक्व फैसले नहीं लिए और उस समय भी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने आलाकमान के फैसले को तब ‘बचकाना’ करार दिया था। उसका कहना है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह यदि कांग्रेस में बने रहते तो वह सबको साथ लेकर चलते और पार्टी बेहतर स्थिति में होती।
वहीं उत्तराखंड में कांग्रेस हरीश रावत के नेतृत्व को लेकर कुछ ज्यादा ही उत्साहित रही है जबकि श्री रावत लगातार चुनाव हारते आ रहे हैं। पंजाब कांग्रेस के प्रभारी महासचिव के रूप में श्री रावत पार्टी के आंतरिक विवाद को सुलझाने की बजाए उसे अपने बयानों से उस समय उलझाते गये। इससे पहले असम के प्रभारी महासचिव के रूप में भी उनकी भूमिका संतोषजनक नहीं मानी गयी थी।
कांग्रेस के एक अन्य नेता का कहना है कि हार के कारणों पर आत्ममंथन और आत्मचिंतन के लिए जल्द ही पार्टी की सर्वोच्च नीति निर्धारक संस्था कांग्रेस कार्य समिति की बैठक बुलाई जानी चाहिए जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष सदस्यों के साथ पार्टी की आगे की रणनीति पर विचार विमर्श करें।
पार्टी के नेताओं को अगले साल कई राज्यों में चुनावों की चिंता सताने लगी है। उनका मानना है कि हालात सुधारने के लिए कांग्रेस नेतृत्व को नई सोच के साथ काम करना ही पड़ेगा।