ऊंचे पर्वत शिखर पर विराजमान सिद्धिदात्री मां कुंजापुरी अपने भक्तों के सभी मनोरथ पूर्ण करती हैं,,,,,,पढ़िये,,,वरिष्ठ पत्रकार वाचस्पति रयाल का आलेख

 810 total views

  • समुद्र तल से 6 हजार 3 सौ फीट की ऊंचाई पर स्थित यह सुप्रसिद्ध सिद्ध पीठ
  • ऋषिकेश-गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर  नरेंद्रनगर से 16किमी० दूर
  • 1974 से निरंतर हर वर्ष नवरात्रों के पावन अवसर पर आयोजित होता है श्री कुंजापुरी पर्यटन एवं विकास मेला
  • पौराणिक मान्यता है कि इस स्थान पर देवी सती का कुंज (हृदय) भाग गिरा था,इसलिए नाम कुंजापुरी पड़ा

वाचस्पति रयाल@नरेन्द्रनगर।
महाराजा नरेंद्र शाह द्वारा बसाये शहर नरेन्द्रनगर के ऊपरी छोर पर स्थित ऊंचे पर्वत शिखर पर सुप्रसिद्ध सिद्ध पीठ मां कुंजापुरी का मंदिर विराजमान है।
समुद्र तल से 6 हजार 3 सौ फीट की ऊंचाई पर स्थित यह सुप्रसिद्ध सिद्ध पीठ ऋषिकेश-गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर ऋषिकेश से नरेंद्रनगर 16किमी० व इससे आगे हिंडोलाखाल 8 किमी० तथा यहां से 5 किमी ० वाहन के ज़रिए अर्थात कुल 31किलोमीटर की यात्रा वाहन के ज़रिए पूरा कर श्री सिद्ध पीठ कुंजापुरी मंदिर में मां के दर्शन कर श्रद्धालु भक्त गण पुण्य का लाभ अर्जित करते हैं।

श्री कुंजापुरी प्रसिद्ध सिद्ध पीठ 52 सिद्ध पीठों में से एक है। इसी कुंजापुरी सिद्ध पीठ के नाम से मां के चरणों में स्थित शहर नरेंद्रनगर में वर्ष 1974 से श्री कुंजापुरी पर्यटन एवं विकास मेले का आयोजन निरंतर हर वर्ष नवरात्रों के पावन अवसर पर आयोजित किया जाता है।
ऊंचे पर्वत शिखर पर विराजमान इस सिद्ध पीठ से बंदर पुंछ ,चौखम्भा, नीलकंठ, सुरकंडा,चंद्रबदनी,हरिद्वार आदि विहंगम व धार्मिक स्थलों के दर्शन हो जाते हैं।

पौराणिक मान्यता है कि इस स्थान पर देवी सती का कुंज (हृदय) भाग गिरा था, जिसके कारण इस स्थान का नाम कुंजापुरी पड़ा।
स्कंद पुराण के केदार खंड के अनुसार पौराणिक काल में कनखल हरिद्वार में दक्ष प्रजापति ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया था, सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया गया,किंतु अपने दामाद कैलाश वासी शिव व अपनी पुत्री शक्ति को आमंत्रित नहीं किया गया।
पिता द्वारा इतना बड़ा यज्ञ हो और यज्ञ का पता मां सती को हो और मां सती इतने बड़े यज्ञ में शामिल न हों, यह संभव न था। मां सती ने, यज्ञ में न बुलाए जाने पर भी पति शिव से अपने मायका जाने व शिव जी से भी यज्ञ में चलने का अनुरोध किया।

शिव जी के मना करने व समझाने पर भी जिद करने पर शिव ने सती को यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी, मगर स्वयं नहीं गए। शिवजी ने सती के साथ अपने दो गण भेज दिए।
यज्ञ में पहुंची माता सती ने माता-पिता द्वारा भी अपनी उपेक्षा किए जाने व बहनों की बातों में व्यंग व उपवास के भाव भरे देखे व पिता दक्ष द्वारा भगवान शंकर के प्रति अपमानजनक वचन कहते सुने तो मां सती ने असह्य ग्लानि महसूस की।

यह सब देख कर सती का हृदय क्रोध,ग्लानि से संत्पत हो उठा और उन्होंने कुपित होकर यज्ञ कुंड में कूद कर अपनी आहुति दे दी।
यह सब देख शिव गणों ने यज्ञ का विध्वंस कर क्रोध में दक्ष का सर काट डाला।
भगवान शिव को जब इस समूची घटना की जानकारी मिली तो वह कैलाश से उतरकर कनखल पहुंचे और यज्ञ कुंड से मां सती का पार्थिव शरीर अपने कंधे पर उठाकर कैलाश की ओर चल पड़े। सती का शव रास्ते में जगह-जगह टूट कर गिरता रहा। सिर,धड़ व उदर जिन स्थानों पर गिरे वहां क्रमशः सुरकंडा, कुंजापुरी व चंद्र बदनी सिद्ध पीठों की स्थापना हुई।
श्री कुंजापुरी सिद्ध पीठ नरेंद्रनगर से 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यह देवस्थान अत्यंत ही मनोहारी रमणीक स्थल है।
चारों ओर बांज-बुरांश व घने जंगलों से आच्छादित बनों की हरीतिमा इस स्थान को और भी सुशोभित बना देती है।

पौराणिक व धार्मिक मान्यता है कि कुंजापुरी जैसे सुप्रसिद्ध सिद्ध पीठ में मां भगवती की अपार शक्ति के विद्यमान होने से श्रद्धालुओं व भक्तजनों की मनोकामनाएं सच्ची श्रद्धा के साथ पूर्ण होती रही हैं।
बताते चलें कि वर्ष 1974 से मां कुंजापुरी के नाम से हर वर्ष नरेंद्रनगर शहर में नवरात्रों के महापर्व पर श्री कुंजापुरी पर्यटन एवं विकास मेले का भव्य आयोजन होता चला आ रहा है। वर्तमान में यह मेला प्रदेश के बड़े मेलों में शुमार है।

इस मेले को राज्य स्तरीय मेले का स्वरूप देने के लिए क्षेत्रीय विधायक व प्रदेश के वन तथा तकनीकी शिक्षा मंत्री सुबोध उनियाल निरंतर प्रयासरत रहे हैं, और इसमें जरा भी शंका नहीं है कि आज मेला जिस भव्य स्तर पर पहुंच चुका है, उसके शिल्पी सुबोध उनियाल ही हैं।
इस बार मेले के मुख्य संरक्षक सुबोध उनियाल, मेला समिति के अध्यक्ष व पालिका परिषद के अध्यक्ष राजेंद्र विक्रम सिंह पंवार, उपजिलाधिकारी व मेला समिति के सचिव देवेंद्र सिंह नेगी मेले की विभिन्न उपसमितियों के पदाधिकारियों व गणमान्य नागरिकों के सहयोग से मेले के और भव्य आयोजन के लिए कटिबद्ध व प्रतिबद्ध हैं।

प्रथमेे शैलपुत्रीश्च सती ने यज्ञ कुंड में अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया और इस बार वह शैलपुत्री के नाम से विख्यात हुई।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *