अनोखा उत्सव : देवडोली और पांडव पश्वों के सानिध्य में खेली गई दूध-मक्खन की होली

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  • कृष्ण और राधा के मटकी फोड़ने के बाद होती है उत्सव की शुरूआत
  • 11 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित दयारा बुग्याल में खेली जाती है दूध-मक्खन की होली 
  • अण्डूड़ी उत्सव के नाम से जाना जाता है बटर फेस्टिवल
  • पंचगाई रैथल , नटीण, बंद्राणी, क्यार्क, भटवाड़ी के पांच पांडवों के पश्वा पहुंचते हैं दयारा बुग्याल

क्रान्ति मीडिया@उत्तरकाशी।

दायरा पर्यटन उत्सव समिति द्वारा इस वर्ष भी बटर फेस्टिवल यानि दूध-मक्खन की अनूठी होली का आयोजन किया। उत्तरकाशी जनपद के दयारा बुग्याल में सदियों से यह अण्डूड़ी उत्सव (बटर फेस्टिवल) का आयोजन किया जाता रहा है।

इस वर्ष भी गुरुवार को भी 11 हजार फीट की ऊंचाई पर दयारा बुग्याल में दूध-मक्खन की होली खेली गई। उत्सव समेश्वर देवडोली और पांडव पश्वों के सानिध्य में धूमधाम से मनाया गया। कृष्ण और राधा के मटकी फोड़ने के बाद पंचगाई पट्टी सहित आस-पास के ग्रामीणों ने दूध-दही और मक्खन की होली खेली।

गुलाल की जगह एक दूसरे पर लोगों ने दूध-मक्खन लगाकर रासो तांदी नृत्य का आयोजन किया। सुबह दयारा पर्यटन उत्सव समिति के निमंत्रण पर पंचगाई रैथल सहित नटीण, बंद्राणी, क्यार्क, भटवाड़ी के आराध्य देवता समेश्वर देवता की देवडोली सहित पांच पांडवों के पश्वा दयारा बुग्याल पहुंचे।

जनपद के अन्य स्थानों से भी स्थानीय लोग दयारा बुग्याल पहुंचे। जहां पर पहले पांच पांडव के पश्वा अवतरित हुए और उसके बाद समेश्वर देवता की देवडोली के साथ उनके पश्वा भी अवतरित हुए।

लोक पंरपरा के अनुसार समेश्वर देवता ने डांगरियों पर चलकर मेलार्थियों को आशीवार्द दिया। उसके बाद ग्रामीणों की बुग्याल में स्थित छानियों में एकत्रित दूध-दही और मक्खन को वन देवताओं सहित स्थानीय देवी-देवताओं को भोग चढ़ाया गया। उसके बाद राधा-कृष्ण ने मक्खन की हांडी को तोड़ा और उसके बाद बटर फेस्टिवल का जश्न शुरू हुआ।

इस अवसर पर दयारा पर्यटन उत्सव समिति के अध्यक्ष मनोज राणा, रेथल गांव के प्रधान प्रतिनिधि महेंद्र राणा, नटीण ग्राम प्रधान महेंद्र पोखरियाल, बंद्राणी गांव से प्रतिनिधि सुदर्शन चौहान, क्यार्क गांव से प्रतिनिधि पदम रावत और क्षेत्रीय ग्रामीण और पर्यटक मौजूद थे।

       प्रकृति मां का आभार जताने का उत्सव है ‘अण्डूड़ी उत्सव’ याने ‘बटर फेस्टिवल’

(एल. मोहन लखेड़ा)

जनपद उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 40 किमी दूर समुद्रतल से 1 हजार फीट की उंचाई पर स्थित दयारा बुग्याल में ग्रामीण पारंपरिक रूप से सदियों से ही भाद्रपद महीने की संक्राति को दूध मक्खन मट्ठा की होली खेलते रहे हैं। प्रकृति का आभार जताने वाले यह उत्सव ग्रामीणों और प्रकृति के बीच के मधुर संबंध का भी प्रतीक है।

रेचल और रैथल, नटीण, भटवाड़ी, क्यार्क, बंद्राणी पांच गांव की समिति के आह्वान पर ग्रामीण हर वर्ष की भांति इस वर्ष. भी अपने मवेशियों के साथ गर्मियों की दस्तक के साथ ही रेथल गांव से 7 किमी की पैदल दूरी पर स्थित दयारा बुग्याल स्थित छानियों में चले जाते हैं। 28 वर्ग किमी. क्षेत्र में  फैले बुग्याल मवेशियों के आदर्श चारागाह होते हैं और यहां उगने वाले औषधीय गुणों से भरपूर पौधों से दुधारू मवेशियों के दुग्ध उत्पादन में गांव के मुकाबले अप्रत्याशित वृद्धि होती है। मानसून बीतने के साथ ही जब बुग्याल में सर्दियां दस्तक देने लगती है तो ग्रामीण अपने मवेशियों के साथ वापिस गांव लौटने की तैयारियों में जुट जाते हैं लेकिन इससे पूर्व ग्रामीण दयारा बुग्याल में मवेशियों और उन्हें सुरक्षित रखने एवं दुधारू पशुओं के दूध में वृद्धि के लिए प्रकृति व स्थानीय देवताओं का आभार जताना नहीं भूलते।

प्रकृति का आभार जताने के लिए ही ग्रामीण सदियों से इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं। वर्ष 2006 में रैथल के ग्रामीणों की दयारा पर्यटन उत्सव समिति ने इस दूध मट्ठा मक्खन की ‘अनोखी होली’ को देश विदेश के पर्यटकों से जोड़ने के लिए इसके आयोजन को बड़े स्तर पर करने का फैसला लिया। 2006 से लेकर अब तक दयारा पर्यटन उत्सव समिति हर वर्ष भाद्रपद माह की संक्राति यानि अगस्त महीने के मध्य में दयारा बुग्याल में ‘अण्डूड़ी उत्सव’ का भव्य आयोजन करती आ रही है। पूरी दुनिया में मक्खन मट्ठा दूध की यह अनोखी व अनूठी होली का आयोजन सिर्फ दयारा बुग्याल में ही होता है। दयारा पर्यटन उत्सव समिति बिगत डेढ़ दशकों से दयारा बुग्याल में इसे भव्य रूप से ग्रामीणों के साथ मिलकर मना रही है जिस कारण इस ‘अढूडी उत्सव’ को अपने अनाखे रूप के कारण बटर फेस्टिवल का नाम मिला ।

देश विदेश से हजारों पर्यटक भी हर साल इस अनोखे उत्सव में हिस्सा लेने के लिए रेथल व दयारा बुग्याल पहुंचते हैं। अब तक रैथल के ग्रामीणों की ओर से इस मेले का आयोजन किया जा रहा था लेकिन इस साल दयारा सर्किट में स्थित रैथल समेत पांच गांव इसका संयुक्त रूप से आयोजन कर रहे हैं। रैथल, नटीण, बंद्राणी, क्यार्क, भटवाड़ी पारंपरिक रूप से पंचगाई के रूप में संबोधित होते हैं और इन पांचों गांव में धार्मिक, सांस्कृतिक, पारंपरिक कार्यक्रम संयुक्त रूप से आयोजित होते रहे हैं |

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